
इंट्रोडक्शन
ओमेगा-3 फैटी एसिड हमारे लिए इतने जरूरी क्यों हैं? ये वो सब्सटेंसेज हैं जो इंसान के शरीर के लिए एसेंशियल हैं, यानी बिना इनके काम नहीं चलता। सिंपल शब्दों में, हमारा शरीर इन्हें खुद नहीं बना सकता, इसलिए इन्हें डाइट से लेना जरूरी है।
तो ओमेगा-3 फैटी एसिड किस चीज में हेल्पफुल हैं?
इसका एंटी-इन्फ्लेमेटरी असर है।
ये ब्रेन के सही फंक्शन और डेवलपमेंट में, साथ ही हमारी विजन की नॉर्मल स्टेट में भी कॉन्ट्रिब्यूट करते हैं।
ये हमारी इम्युनिटी को सपोर्ट करते हैं।
ये कार्डियोवैस्कुलर डिजीज और अल्जाइमर के डेवलपमेंट के खिलाफ प्रिवेंटिव असर रखते हैं।
ये नॉर्मल ब्लड प्रेशर बनाए रखने में भी मददगार हो सकते हैं।
एजिंग के खिलाफ पॉजिटिव असर।
क्या ओमेगा-3 फैटी एसिड की पर्याप्त मात्रा 'खाई' जा सकती है?
ओमेगा-3 फैटी एसिड (PUFA) के सबसे जरूरी स्रोतों में से एक हैं वो मछलियाँ जिनमें फैट ज्यादा होता है। जैसे कि सैल्मन, सार्डिन, मैकेरल या टूना। ओमेगा-3 फैटी एसिड (PUFA) के नाम के पीछे ईकोसापेंटेनोइक एसिड (EPA) और डोकोसाहेक्सेनोइक एसिड (DHA) छुपे हुए हैं। ओमेगा-3 फैटी एसिड के मामले में, बहुत से लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में इन्हें लेना सच में एक चैलेंज है। दिक्कत ये है कि हमारी डाइट में ओमेगा-3 फैटी एसिड अक्सर कम ही होते हैं। इसके उलट, ओमेगा-6 फैटी एसिड की मात्रा, जो हमारी डाइट में पहले से ही ज्यादा है, वो हावी रहती है। इस अनुपात को बैलेंस करना काफी मुश्किल है, खासकर जब इसमें मछली और सीफूड से नफरत और उनकी प्लेट पर कम मौजूदगी भी जोड़ दें। DiNicolantonio 2020 स्टडी के ऑथर्स बताते हैं कि 100 साल पहले ओमेगा-6 / ओमेगा-3 फैटी एसिड का अनुपात लगभग 4:1 था। लेकिन आजकल वेस्टर्न डाइट में ये अनुपात ओमेगा-6 फैटी एसिड के फेवर में 20 गुना तक ज्यादा हो गया है। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स का कंजम्पशन बढ़ गया है।
यहां ये जरूर मेंशन करना चाहिए कि कोस्टल स्टेट्स और भारत जैसे लैंडलॉक्ड कंट्री के लोगों के लिए चीजें अलग होंगी। भारत में, फिश आमतौर पर इतनी ज्यादा प्लेट पर नहीं दिखती (फेस्टिव कार्प को छोड़कर)।
भारत में टोटल फिश कंजम्पशन अभी भी काफी कम है। लंबे समय से ये लगभग 5-6 किलोग्राम प्रति व्यक्ति/साल के आसपास है। कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि फिश कंजम्पशन प्रति व्यक्ति प्रति साल लगभग 17 किलोग्राम होना चाहिए। अगर हम स्पेन को देखें, तो ये वैल्यू लगभग 57 किलोग्राम है, जो कि काफी बड़ा फर्क है।
नतीजा क्या निकला?
अपने डेली डाइट में पर्याप्त ओमेगा-3 फैटी एसिड्स लेना सच में एक चैलेंज हो सकता है। अगर इसमें मछली की उपलब्धता और कीमत जोड़ दें, साथ ही कई लोगों की मछली खाने में हिचकिचाहट भी, तो ओमेगा-3 फैटी एसिड्स का सही तरह से चुना गया सप्लीमेंटेशन जरूर कंसीडर करना चाहिए। ऊपर से, ये वो सब्सटेंसेज हैं जिन्हें हमारा शरीर खुद नहीं बना सकता और हमें इन्हें डाइट से ही लेना पड़ता है।
द्वारा: वेंदुला पोपेलकोवा, पीएच.डी. केमिस्ट्री और फूड टेक्नोलॉजी, इकोट्रोफोलॉजी
संदर्भ:
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